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भारतीय इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हैं जिन्होंने देश की तकनीकी प्रगति और युवाओं के मन में वैज्ञानिक सोच को इतना प्रभावित किया हो। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक ऐसा ही नाम है जो भारत के हर नागरिक के दिल में बसा हुआ है। एक साधारण परिवार से निकलकर भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंचने वाले डॉ कलाम की जीवन यात्रा हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
डॉ कलाम को भारत के मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष और रक्षा कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाई और देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन उनकी पहचान सिर्फ एक वैज्ञानिक तक सीमित नहीं थी। वे एक शिक्षक, लेखक, प्रेरक वक्ता और सबसे बढ़कर एक सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया।
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| पूरा नाम | डॉ. एवलुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम (Dr. Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam) |
| उपनाम | मिसाइल मैन ऑफ इंडिया |
| जन्म तिथि | 15 अक्टूबर 1931 |
| जन्म स्थान | रामेश्वरम, तमिलनाडु, भारत |
| उम्र | 83 वर्ष (निधन के समय, 2015) |
| ऊँचाई | लगभग 5 फीट 5 इंच (165 सेमी) |
| वजन | लगभग 70 किलोग्राम |
| पिता का नाम | जैनुलाब्दीन |
| माता का नाम | आशिअम्मा |
| भाई का नाम | जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं |
| वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
| पत्नी का नाम | नहीं |
| संतान | नहीं |
| धर्म | इस्लाम |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| पेशा | वैज्ञानिक, शिक्षक, भारत के 11वें राष्ट्रपति |
| राष्ट्रपति कार्यकाल | 2002 से 2007 |
| निधन तिथि | 27 जुलाई 2015 |
| निधन स्थान | शिलांग, मेघालय, भारत |

अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलाब्दीन एक नाव के मालिक थे और मछुआरों को किराए पर नाव देते थे। उनकी माता आशियम्मा एक गृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी लेकिन घर में शिक्षा और नैतिक मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता था।
कलाम के परिवार में कुल पांच भाई-बहन थे और वे सबसे छोटे थे। उनके पिता भले ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन वे बहुत बुद्धिमान और आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उनकी माता भी बेहद सरल और दयालु स्वभाव की थीं। इस सादगी भरे माहौल में कलाम ने अपने बचपन के दिन बिताए।
रामेश्वरम एक छोटा सा तटीय शहर था जहां विभिन्न धर्मों के लोग मिलजुलकर रहते थे। कलाम के बचपन के दोस्तों में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी शामिल थे। इस सांप्रदायिक सद्भाव ने उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। बाद में उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा कि कैसे उनके हिंदू दोस्तों के माता-पिता उन्हें खाना खिलाते थे और उनके घर उनका स्वागत करते थे।

कलाम की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम के ही एक स्कूल में हुई। बचपन से ही वे पढ़ाई में बहुत मेहनती थे लेकिन गणित में उनकी रुचि सबसे अधिक थी। परिवार की आर्थिक तंगी के कारण उन्हें छोटी उम्र में ही काम करना पड़ा। वे सुबह जल्दी उठकर अखबार बांटने का काम करते थे ताकि परिवार की आय में योगदान दे सकें।
इन चुनौतियों के बावजूद कलाम ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनके एक शिक्षक ने उन्हें विज्ञान की ओर प्रेरित किया और कहा कि यदि वे मेहनत करें तो एक दिन महान वैज्ञानिक बन सकते हैं।
इसके बाद 1955 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। यहीं से उनके जीवन की असली यात्रा शुरू हुई। उन्हें हवाई जहाज और रॉकेट बनाने में गहरी दिलचस्पी थी। कॉलेज में उनके प्रोजेक्ट्स इतने अच्छे होते थे कि प्रोफेसर भी उनकी तारीफ करते थे।

1960 में कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में एक वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। यहां उन्होंने एक छोटे हेलीकॉप्टर की डिजाइन पर काम किया। लेकिन उनका मन यहां ज्यादा दिन नहीं लगा क्योंकि उन्हें रॉकेट और स्पेस टेक्नोलॉजी में काम करना था।
1969 में उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में स्थानांतरित कर दिया गया। यह उनके करियर का टर्निंग पॉइंट था। ISRO में उन्होंने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल प्रोजेक्ट के निदेशक के रूप में काम किया। उनके नेतृत्व में भारत ने अपना पहला स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-3) विकसित किया जिसने 1980 में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया।
यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था और डॉ कलाम इस सफलता के मुख्य वास्तुकार थे। इस उपलब्धि के बाद उन्हें पूरे देश में पहचान मिली और उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का हीरो माना जाने लगा।
1980 के दशक में डॉ कलाम को भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में वापस बुलाया गया। यहां उन्हें इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का प्रमुख बनाया गया। यह भारत की सबसे महत्वाकांक्षी रक्षा परियोजना थी जिसका उद्देश्य देश को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाना था।
डॉ कलाम के नेतृत्व में पांच प्रमुख मिसाइलों का विकास किया गया:
इन मिसाइलों के सफल परीक्षण ने भारत को रक्षा तकनीक में एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। डॉ कलाम की कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण उन्हें मिसाइल मैन ऑफ इंडिया का खिताब मिला। यह उपाधि उनकी पहचान बन गई और आज भी उन्हें इसी नाम से याद किया जाता है।

1998 में भारत ने पोखरण में अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया जिसे ऑपरेशन शक्ति के नाम से जाना जाता है। डॉ कलाम इस पूरे मिशन के मुख्य सलाहकारों में से एक थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वैज्ञानिक सलाहकार आर चिदंबरम के साथ मिलकर इस परीक्षण को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
पोखरण-2 परीक्षण की सफलता ने भारत को दुनिया की छठी परमाणु शक्ति बना दिया। इस उपलब्धि के बाद डॉ कलाम की लोकप्रियता और भी बढ़ गई। पूरे देश में उन्हें एक राष्ट्रीय हीरो के रूप में देखा जाने लगा। उनके काम ने यह साबित कर दिया कि भारतीय वैज्ञानिक किसी भी क्षेत्र में विश्व स्तर का काम कर सकते हैं।

2002 में डॉ कलाम को भारत के राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित किया गया। यह एक अप्रत्याशित लेकिन बेहद लोकप्रिय निर्णय था। एक वैज्ञानिक का राष्ट्रपति बनना भारतीय लोकतंत्र में एक नया अध्याय था। 25 जुलाई 2002 को उन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी डॉ कलाम अपनी सादगी नहीं भूले। वे अक्सर युवाओं से मिलते थे, स्कूलों और कॉलेजों में जाते थे और छात्रों को प्रेरित करते थे। उन्हें पीपुल्स प्रेजिडेंट के नाम से जाना जाने लगा क्योंकि वे आम लोगों के बेहद करीब थे।
राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 2007 तक रहा। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, युवा विकास और तकनीकी प्रगति पर विशेष जोर दिया। उन्होंने इंडिया 2020 नामक एक विजन दस्तावेज प्रस्तुत किया जिसमें भारत को 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का रोडमैप दिया गया था।

राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद डॉ कलाम ने खुद को पूरी तरह से शिक्षण और लेखन को समर्पित कर दिया। वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर बने और देश भर में छात्रों को पढ़ाते रहे। उन्हें शिक्षण से बेहद प्यार था और वे अक्सर कहते थे कि शिक्षक बनना उनका सबसे बड़ा सपना था।
उन्होंने IIT मद्रास, IIT दिल्ली, IIM अहमदाबाद और कई अन्य संस्थानों में अतिथि व्याख्यान दिए। हर बार जब वे किसी संस्थान में जाते थे तो हजारों छात्र उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़ते थे। उनके व्याख्यान सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं होते थे बल्कि वे जीवन, सपने, मेहनत और देशभक्ति के बारे में भी बात करते थे।
डॉ कलाम का मानना था कि शिक्षा ही देश को बदल सकती है। वे युवाओं से कहते थे कि सपने देखो और उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करो। उनका एक प्रसिद्ध कथन है – “सपने वो नहीं हैं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो आपको नींद ही न आने दें।”

डॉ कलाम एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवन में कई किताबें लिखीं जो बेस्टसेलर बनीं। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक विंग्स ऑफ फायर (अग्नि की उड़ान) है जो उनकी आत्मकथा है। इस किताब में उन्होंने अपने बचपन से लेकर ISRO और DRDO में किए गए कामों का वर्णन किया है। यह किताब लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।
उनकी लेखन शैली बेहद सरल और प्रेरक थी। वे जटिल वैज्ञानिक विषयों को इतने आसान तरीके से समझाते थे कि हर कोई उसे समझ सकता था। उनकी किताबों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और वे दुनिया भर में पढ़ी गईं।

डॉ कलाम को उनके असाधारण योगदान के लिए देश-विदेश के कई सम्मानों से नवाजा गया:
लेकिन इन सभी सम्मानों से बढ़कर उन्हें लोगों का प्यार मिला। हर उम्र के लोग उन्हें प्यार करते थे। बच्चे उन्हें कलाम अंकल कहकर बुलाते थे तो युवा उन्हें अपना आइडल मानते थे।

डॉ कलाम का जीवन दर्शन बेहद सरल और व्यावहारिक था। वे धार्मिक सद्भाव, कड़ी मेहनत, सादगी और देशभक्ति में विश्वास करते थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं किया।
उनका मानना था कि युवा शक्ति ही देश की असली ताकत है। वे कहते थे कि यदि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है तो हमें अपनी युवा पीढ़ी को सशक्त बनाना होगा। उन्होंने हमेशा युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित किया।
27 जुलाई 2015 को डॉ कलाम IIM शिलांग में एक व्याख्यान देने गए थे। व्याख्यान के दौरान अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे मंच पर ही गिर गए। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके। शाम 7:45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनकी मृत्यु की खबर से पूरा देश स्तब्ध रह गया। लाखों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनके गृहनगर रामेश्वरम में किया गया। हजारों लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। उन्होंने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन हों, यदि व्यक्ति में दृढ़ संकल्प और मेहनत करने की इच्छा हो तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है।
रामेश्वरम के एक छोटे से घर से निकलकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचने का उनका सफर प्रेरणा से भरा हुआ है। उन्होंने भारत को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने में अपना पूरा जीवन लगा दिया। मिसाइल तकनीक से लेकर परमाणु कार्यक्रम तक उनका योगदान अतुलनीय है।
लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने लाखों युवाओं के दिलों में सपने देखने की हिम्मत भरी। उन्होंने हर छात्र को यह विश्वास दिलाया कि वे भी कुछ बड़ा कर सकते हैं। उनके शब्द आज भी हर युवा को प्रेरित करते हैं।
डॉ कलाम भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार, उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन दर्शन हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। वे सच्चे अर्थों में एक महान वैज्ञानिक, दूरदर्शी नेता और प्रेरक व्यक्तित्व थे। उनका जीवन हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को हमारा शत-शत नमन। उनके सपनों का भारत बनाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था।
डॉ कलाम ने भारत के इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम का नेतृत्व किया और अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और नाग जैसी पांच महत्वपूर्ण मिसाइलों को विकसित किया। इस योगदान के कारण उन्हें मिसाइल मैन ऑफ इंडिया कहा जाता है।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम 25 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। उन्होंने 2007 तक इस पद पर सेवा की और उन्हें पीपुल्स प्रेजिडेंट के नाम से जाना गया।
डॉ कलाम की सबसे प्रसिद्ध किताब विंग्स ऑफ फायर (अग्नि की उड़ान) है जो उनकी आत्मकथा है। इसके अलावा इग्नाइटेड माइंड्स और इंडिया 2020 भी उनकी लोकप्रिय पुस्तकें हैं।
डॉ कलाम को 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली।
27 जुलाई 2015 को IIM शिलांग में व्याख्यान देते समय डॉ कलाम को दिल का दौरा पड़ा और शाम 7:45 बजे उनका निधन हो गया। वे अपने प्रिय काम यानी शिक्षण को करते हुए गुजरे।
डॉ कलाम ने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में स्नातक किया और 1955 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया।
1998 में पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में डॉ कलाम मुख्य वैज्ञानिक सलाहकारों में से एक थे। उन्होंने इस मिशन की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिससे भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बना।
डॉ कलाम का सबसे प्रसिद्ध कथन है – “सपने वो नहीं हैं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो आपको नींद ही न आने दें।” यह उनकी प्रेरणादायक सोच को दर्शाता है।
डॉ कलाम 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में शामिल हुए। यहां उन्होंने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल प्रोजेक्ट के निदेशक के रूप में काम किया और SLV-3 का सफल विकास किया।
डॉ कलाम के जन्मदिन 15 अक्टूबर को विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में इस दिन को आधिकारिक मान्यता दी थी।
डॉ कलाम के पिता जैनुलाब्दीन एक नाव के मालिक थे और मछुआरों को नाव किराए पर देते थे। उनकी माता आशियम्मा एक गृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी लेकिन नैतिक मूल्यों में समृद्ध थी।
इंडिया 2020 डॉ कलाम का एक विजन दस्तावेज था जिसमें भारत को 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का रोडमैप दिया गया था। इसमें शिक्षा, तकनीक और आर्थिक विकास पर जोर दिया गया था।
डॉ कलाम ने 1960 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में एक वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में 1969 में वे ISRO में शामिल हुए।
डॉ कलाम एक प्रेरणादायक शिक्षक थे। वे जटिल वैज्ञानिक विषयों को सरल भाषा में समझाते थे और छात्रों को सपने देखने और मेहनत करने के लिए प्रेरित करते थे। वे हमेशा युवाओं के बीच रहना पसंद करते थे।
डॉ कलाम का बचपन रामेश्वरम के सादे और धार्मिक सद्भाव से भरे माहौल में बीता। उन्हें छोटी उम्र में अखबार बांटने का काम करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी पढ़ाई नहीं छोड़ी। विभिन्न धर्मों के दोस्त होने से उनके व्यक्तित्व में सहिष्णुता आई।
डॉ कलाम SLV-3 प्रोजेक्ट के निदेशक थे। इस परियोजना ने 1980 में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
राष्ट्रपति रहते हुए भी डॉ कलाम अपनी सादगी और जन-संपर्क के लिए जाने जाते थे। वे नियमित रूप से स्कूलों, कॉलेजों में जाते थे और युवाओं से बातचीत करते थे। इसी कारण उन्हें पीपुल्स प्रेजिडेंट कहा गया।
डॉ कलाम शाकाहारी थे और बेहद सादा जीवन जीते थे। वे सुबह जल्दी उठते थे, नियमित व्यायाम करते थे और रात को जल्दी सो जाते थे। उन्हें संगीत, कविता लिखना और वीणा बजाना पसंद था।
डॉ कलाम की विरासत उनके वैज्ञानिक योगदान, प्रेरणादायक विचार और युवाओं के प्रति समर्पण में है। उनके नाम पर कई संस्थान, पुरस्कार और योजनाएं चल रही हैं। वे आज भी करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।