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भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अनिल कुंबले का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है। वे न केवल भारत के सबसे सफल गेंदबाज़ हैं बल्कि विश्व क्रिकेट में भी उनकी अलग पहचान है। अपने 18 साल के शानदार करियर में उन्होंने भारतीय क्रिकेट को अनगिनत यादगार जीत दिलाईं। अनिल कुंबले को उनकी कठोर मेहनत, समर्पण और अनुशासन के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपनी अनोखी गेंदबाजी शैली से दुनिया भर के बल्लेबाजों को परेशान किया और भारतीय क्रिकेट में एक नया अध्याय लिखा।
अनिल कुंबले का जीवन हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने साबित किया कि मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। आइए जानते हैं इस महान क्रिकेटर की जीवन यात्रा के बारे में विस्तार से।
| विवरण | जानकारी |
| पूरा नाम | अनिल राधाकृष्ण कुंबले |
| जन्म तिथि | 17 अक्टूबर 1970 |
| जन्म स्थान | बैंगलोर, कर्नाटक, भारत |
| उम्र | 54 वर्ष (2024 में) |
| पिता का नाम | कृष्णा स्वामी |
| माता का नाम | सरोजा |
| भाई | दिनेश कुंबले |
| शिक्षा | मैकेनिकल इंजीनियरिंग, राष्ट्रीय विद्यालय कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर |
| खेल | क्रिकेट |
| बल्लेबाजी शैली | दाएं हाथ का बल्लेबाज़ |
| गेंदबाजी शैली | दाएं हाथ का लेग स्पिन गेंदबाज़ |
| टेस्ट डेब्यू | 16 अगस्त 1990 बनाम इंग्लैंड |
| वनडे डेब्यू | 25 अप्रैल 1990 बनाम श्रीलंका |
| अंतिम टेस्ट | 2 नवंबर 2008 बनाम ऑस्ट्रेलिया |
| टेस्ट विकेट | 619 विकेट |
| वनडे विकेट | 337 विकेट |
| प्रमुख उपलब्धि | एक पारी में 10 विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज़ |
| कप्तानी | भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान (2007-2008) |
| कोचिंग | भारतीय टीम के मुख्य कोच (2016-2017) |
| पुरस्कार | अर्जुन पुरस्कार (1995), पद्म श्री (2005), आईसीसी हॉल ऑफ फेम (2015) |

अनिल राधाकृष्ण कुंबले का जन्म 17 अक्टूबर 1970 को बैंगलोर, कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता कृष्णा स्वामी एक कंपनी में जनरल मैनेजर थे और माता सरोजा गृहिणी थीं। उनका परिवार मूल रूप से केरल के कुंबला से ताल्लुक रखता है। अनिल का एक भाई दिनेश भी है। उनकी मातृभाषा कन्नड़ है और वे एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े।
अनिल की प्रारंभिक शिक्षा होली सेंट इंग्लिश स्कूल, बैंगलोर में हुई। उन्होंने अपनी दसवीं कक्षा की पढ़ाई नेशनल हाई स्कूल बासवनगुड़ी से पूरी की। अनिल शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे और अपने माता-पिता ने हमेशा शिक्षा को प्राथमिकता दी। क्रिकेट के प्रति बढ़ते लगाव के बावजूद अनिल ने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
अनिल ने राष्ट्रीय विद्यालय कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1991-92 में अपनी पढ़ाई पूरी की। यह बात उनके अनुशासन और समर्पण को दर्शाती है कि उन्होंने क्रिकेट के साथ-साथ अपनी शिक्षा को भी पूरा किया।
बचपन में अनिल बैंगलोर की गलियों में क्रिकेट खेला करते थे। 13 साल की उम्र में वे यंग क्रिकेटर्स नामक क्लब में शामिल हो गए। यहीं से उनकी क्रिकेट यात्रा की नींव रखी गई। उन्होंने बीएस चंद्रशेखर जैसे महान खिलाड़ियों को देखकर क्रिकेट खेलना सीखा और उनसे प्रेरणा ली।
अनिल कुंबले ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत घरेलू क्रिकेट से की। उन्होंने 1989 में कर्नाटक की टीम के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया। उनका पहला मैच हैदराबाद के खिलाफ था जिसमें उन्होंने 4 विकेट लिए। यह शुरुआत ही उनकी प्रतिभा का संकेत था।
घरेलू क्रिकेट में अनिल के प्रदर्शन ने सबका ध्यान खींचा। वे लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और विकेट ले रहे थे। उनकी गेंदबाजी की खासियत यह थी कि वे परंपरागत लेग स्पिनरों से अलग थे। वे अपनी लंबी कद-काठी का फायदा उठाकर गेंद से ज्यादा उछाल लेते थे।
1990 में अनिल कुंबले को ऑस्ट्रल-एशिया कप के लिए भारतीय टीम में चुना गया। 25 अप्रैल 1990 को शारजाह में श्रीलंका के खिलाफ उन्होंने अपना पहला वनडे मैच खेला। इस मैच में उन्होंने 1 विकेट लिया। यह उनके अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत थी।
इसके कुछ महीने बाद 16 अगस्त 1990 को मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ अनिल ने अपना टेस्ट डेब्यू किया। इस मैच में उन्होंने 43 ओवर में 3 विकेट लिए और 105 रन दिए। उनके 7 ओवर मेडेन भी थे। यह शुरुआत बहुत शानदार नहीं थी लेकिन अनिल ने हार नहीं मानी।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लगातार अच्छे प्रदर्शन के बाद अनिल कुंबले भारतीय टीम के नियमित सदस्य बन गए। 1990 के दशक की शुरुआत में वे भारतीय गेंदबाजी आक्रमण का अहम हिस्सा बन चुके थे।

1990 के दशक के शुरुआती सालों में अनिल कुंबले ने खुद को एक विश्वसनीय गेंदबाज़ के रूप में स्थापित किया। वे लगातार विकेट ले रहे थे और मैच जिताने में अहम भूमिका निभा रहे थे। उनकी गेंदबाजी शैली अनोखी थी जो परंपरागत लेग स्पिनरों से बिल्कुल अलग थी।
1992 में दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर अनिल ने अपनी क्षमता का परिचय दिया। दूसरे टेस्ट में उन्होंने 8 विकेट लिए जिससे उनकी पहचान एक गुणवत्ता वाले स्पिनर के रूप में हुई। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
1993 में वेस्टइंडीज के खिलाफ हीरो कप के फाइनल में अनिल ने अपना सर्वश्रेष्ठ वनडे प्रदर्शन दिया। कोलकाता के ईडन गार्डन में उन्होंने सिर्फ 12 रन देकर 6 विकेट लिए। यह लंबे समय तक किसी भारतीय गेंदबाज़ का सर्वश्रेष्ठ वनडे प्रदर्शन था जब तक कि 2014 में स्टुअर्ट बिन्नी ने इसे नहीं तोड़ा।
1994 में जब श्रीलंका ने भारत का दौरा किया तो अनिल ने अपने 14वें मैच में पहली बार 10 विकेट हॉल हासिल किया। उन्होंने मैच में 128 रन देकर 11 विकेट लिए। इससे भारत को पारी और 119 रन से जीत मिली। यह उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि थी।
1995 के इंग्लिश क्रिकेट सीजन में अनिल नॉर्थम्प्टनशायर के लिए खेले। इस सीजन में वे 20.40 की औसत से 105 विकेट लेकर सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने। इस शानदार प्रदर्शन के लिए विजडन ने उन्हें 1996 में वर्ष के पांच क्रिकेटरों में से एक चुना।
1996 का साल अनिल कुंबले के करियर में बेहद खास रहा। इस साल उन्होंने वनडे में 61 विकेट लिए। टेस्ट और वनडे दोनों मिलाकर वे 90 विकेट के साथ साल के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने।
1996 विश्व कप में अनिल का प्रदर्शन शानदार रहा। उन्हें भारतीय टीम में चुना गया और वे भारत के सभी सात मैचों में खेले। उन्होंने टूर्नामेंट में 15 विकेट लिए और सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने। उनकी औसत 18.73 थी जो बेहद प्रभावशाली थी।
केन्या के खिलाफ भारत के पहले मैच में अनिल ने 28 रन देकर 3 विकेट लिए। इससे भारत को आसान जीत मिली। वेस्टइंडीज के खिलाफ भी उन्होंने 3 विकेट लिए और श्रीलंका के खिलाफ 2 विकेट लिए।
क्वार्टर फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ अनिल ने 48 रन देकर 3 विकेट लिए। उनके इस प्रदर्शन से भारत ने मैच जीत लिया। हालांकि सेमीफाइनल में भारत श्रीलंका से हार गया लेकिन अनिल का प्रदर्शन यादगार रहा।
इस विश्व कप में अनिल की सफलता ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। वे भारतीय गेंदबाजी के स्तंभ बन गए और आने वाले सालों में उनका प्रदर्शन और भी बेहतर होता गया। 1996 में उन्हें विजडन के वर्ष के क्रिकेटर में से एक चुना गया जो उनके शानदार प्रदर्शन का प्रमाण था।
अनिल कुंबले के करियर का सबसे यादगार और ऐतिहासिक क्षण 7 फरवरी 1999 को आया। दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में पाकिस्तान के खिलाफ एक टेस्ट मैच में अनिल ने वह कारनामा किया जो क्रिकेट इतिहास में बहुत कम लोगों ने किया है।
इस मैच में अनिल कुंबले ने एक पारी में पाकिस्तान के सभी 10 विकेट ले लिए। उन्होंने 74 रन देकर 10 विकेट लिए। यह उपलब्धि क्रिकेट के 100 से अधिक साल के इतिहास में केवल दूसरी बार हुई थी। इससे पहले 1956 में इंग्लैंड के जिम लेकर ने यह कारनामा किया था।
यह प्रदर्शन इतना खास था कि विजडन ने इसे क्रिकेट इतिहास का दूसरा सबसे बेहतरीन गेंदबाजी प्रदर्शन माना। अनिल ने इस मैच में शोएब अख्तर, वसीम अकरम, वकार यूनिस जैसे मजबूत बल्लेबाजों को आउट किया।
कहा जाता है कि जब अनिल को 9 विकेट मिल चुके थे तो उनके दोस्त और साथी खिलाड़ी जवागल श्रीनाथ जानबूझकर ऑफ स्टंप के बाहर गेंद फेंक रहे थे ताकि अनिल को दसवां विकेट मिल सके। यह टीम भावना का बेहतरीन उदाहरण था।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि के सम्मान में बैंगलोर में एक ट्रैफिक सर्कल का नाम अनिल कुंबले के नाम पर रखा गया। उन्हें एक कार भी भेंट की गई जिसका लाइसेंस प्लेट KA-10-N-10 था। यह 10 विकेट की उपलब्धि को दर्शाता था।
| टेस्ट मैच | 132 |
| टेस्ट विकेट | 619 |
| वनडे मैच | 271 |
| वनडे विकेट | 337 |
| टेस्ट में पांच विकेट | 35 बार |
| टेस्ट में दस विकेट | 8 बार |
| वनडे में सबसे तेज 400 विकेट | भारत के लिए रिकॉर्ड |
| ICC क्रिकेटर ऑफ द ईयर | सम्मानित |
| पद्म श्री | 1995 |
| पद्म भूषण | 2005 |
| ICC हॉल ऑफ फेम | सम्मानित |
| एक मैच में 10 विकेट लेने का रिकॉर्ड | 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ |

अनिल कुंबले का करियर कई शानदार उपलब्धियों से भरा हुआ है। उन्होंने अपने 18 साल के करियर में भारतीय क्रिकेट के लिए कई रिकॉर्ड बनाए जो आज भी बरकरार हैं।
अनिल कुंबले ने कुल 132 टेस्ट मैच खेले और 619 विकेट लिए। रिटायरमेंट के समय वे टेस्ट क्रिकेट में तीसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ थे। उनसे आगे केवल मुथैया मुरलीधरन और शेन वार्न थे।
अनिल ने अपने पहले 50 टेस्ट विकेट सिर्फ 10 मैचों में पूरे किए। यह रिकॉर्ड लंबे समय तक किसी भारतीय गेंदबाज़ का सबसे तेज़ रिकॉर्ड था जब तक रविचंद्रन अश्विन ने 9 मैचों में यह उपलब्धि हासिल नहीं की।
उन्होंने 21 टेस्ट मैचों में 100 विकेट पूरे किए। यह इरापल्ली प्रसन्ना के बाद किसी भारतीय गेंदबाज़ की दूसरी सबसे तेज़ उपलब्धि थी। प्रसन्ना ने 20 मैचों में यह किया था।
6 अक्टूबर 2004 को अनिल 400 टेस्ट विकेट लेने वाले तीसरे स्पिनर बने। वार्न और मुरलीधरन के बाद वे यह उपलब्धि हासिल करने वाले तीसरे खिलाड़ी थे। कपिल देव के बाद वे 400 विकेट लेने वाले दूसरे भारतीय गेंदबाज़ भी थे।
17 जनवरी 2008 को पर्थ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वे 600 टेस्ट विकेट लेने वाले पहले भारतीय और दुनिया के तीसरे गेंदबाज़ बने। यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक ऐतिहासिक पल था।
अनिल ने 271 वनडे मैच खेले और 337 विकेट लिए। दिसंबर 2002 में वे वनडे में 300 विकेट लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज़ बने। यह उपलब्धि उनके टेस्ट में 300 विकेट पूरे करने के लगभग एक साल बाद आई।
उनका सर्वश्रेष्ठ वनडे प्रदर्शन 1993 में वेस्टइंडीज के खिलाफ था जब उन्होंने 6 विकेट सिर्फ 12 रन में लिए। यह रिकॉर्ड 21 साल तक कायम रहा।
हालांकि अनिल मुख्य रूप से गेंदबाज़ थे लेकिन उन्होंने बल्लेबाजी में भी योगदान दिया। 10 अगस्त 2007 को ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ उन्होंने अपना पहला और एकमात्र टेस्ट शतक बनाया। उन्होंने 110 रन बनाए जो नाबाद रहे।
यह शतक बनाने में उन्हें 117 टेस्ट मैच लगे। यह किसी खिलाड़ी द्वारा पहला शतक बनाने के लिए सबसे ज्यादा मैचों का रिकॉर्ड है। इस शतक के बाद उनकी खुशी देखने लायक थी और ड्रेसिंग रूम में सभी खिलाड़ी उत्साहित थे।
नवंबर 2007 में अनिल कुंबले को भारतीय टेस्ट टीम का कप्तान बनाया गया। राहुल द्रविड़ के इस्तीफा देने के बाद यह जिम्मेदारी उन्हें मिली। वे पहले लेग स्पिनर थे जो भारतीय टीम के कप्तान बने।
कप्तान के रूप में अनिल की पहली श्रृंखला पाकिस्तान के खिलाफ थी। भारत ने तीन मैचों की इस श्रृंखला को 1-0 से जीत लिया। यह घर में 27 सालों बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की पहली जीत थी। यह अनिल की कप्तानी की शानदार शुरुआत थी।
2007-08 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर अनिल ने कप्तान के रूप में टीम को संभाला। यह दौरा विवादों से भरा हुआ था लेकिन अनिल ने टीम को एकजुट रखा। हालांकि भारत श्रृंखला 1-2 से हार गया लेकिन अनिल का नेतृत्व प्रभावशाली रहा।
इस दौरे के दौरान अनिल ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की ओर से सबसे ज्यादा विकेट लेने का भी रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने अपने प्रदर्शन से साबित किया कि वे एक प्रभावी कप्तान और खिलाड़ी दोनों हैं।
अनिल कुंबले ने कुल 14 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी की। इनमें से 3 मैच जीते, 5 हारे और 6 ड्रॉ रहे। हालांकि यह रिकॉर्ड बहुत प्रभावशाली नहीं है लेकिन उन्होंने जिस तरह से टीम का नेतृत्व किया वह सराहनीय था।
कप्तान के रूप में अनिल का सबसे बड़ा योगदान टीम में अनुशासन और मेहनत की संस्कृति स्थापित करना था। उन्होंने हमेशा खेल भावना को सर्वोपरि रखा और युवा खिलाड़ियों के लिए एक आदर्श बने।
अनिल कुंबले को उनकी उपलब्धियों और भारतीय क्रिकेट में योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले।
1995 में अनिल को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह भारत सरकार द्वारा खेल में उत्कृष्टता के लिए दिया जाने वाला प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह उनके शुरुआती करियर में मिला एक बड़ा सम्मान था।
2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। यह भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह पुरस्कार उन्हें क्रिकेट में उनके योगदान और उत्कृष्टता के लिए दिया गया।
2015 में अनिल कुंबले को आईसीसी क्रिकेट हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। यह क्रिकेट जगत का सर्वोच्च सम्मान है। उनके साथ ब्रायन लारा और नर्स बी को भी शामिल किया गया था।
विजडन ने 1996 में उन्हें वर्ष के पांच क्रिकेटरों में से एक चुना। यह सम्मान क्रिकेट जगत में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह उनके 1995 के शानदार प्रदर्शन का प्रतिफल था।
बैंगलोर में एक ट्रैफिक सर्कल का नाम अनिल कुंबले सर्कल रखा गया है। यह उनकी 10 विकेट की उपलब्धि के सम्मान में किया गया था। यह सम्मान दर्शाता है कि बैंगलोर के लोग उन पर कितना गर्व करते हैं।
कर्नाटक सरकार ने 1999 में उन्हें एक विशेष भेंट दी जिसका लाइसेंस प्लेट KA-10-N-10 था। यह उनकी ऐतिहासिक 10 विकेट की उपलब्धि को दर्शाता था।
अनिल कुंबले ने 2 नवंबर 2008 को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दिल्ली टेस्ट में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की अंतिम गेंद फेंकी। उन्होंने बड़े ही सम्मानजनक तरीके से रिटायरमेंट लिया। रिटायरमेंट के बाद भी वे क्रिकेट से जुड़े रहे।
रिटायरमेंट के बाद अनिल ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में अहम भूमिका निभाई। उन्हें आईसीसी क्रिकेट समिति के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने क्रिकेट के नियमों और खेल के भविष्य पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
2015 में उन्हें बीसीसीआई का तकनीकी समिति का प्रमुख बनाया गया। इस पद पर वे भारतीय क्रिकेट के तकनीकी पहलुओं को देखने के लिए जिम्मेदार थे।
जून 2016 में अनिल कुंबले को भारतीय क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया। उनका कार्यकाल बहुत सफल रहा। उनके मार्गदर्शन में भारत ने 17 टेस्ट मैचों में से 12 जीते।
उनकी कोचिंग के दौरान भारतीय टीम ने इंग्लैंड में टेस्ट श्रृंखला जीती। वेस्टइंडीज में भी टीम का प्रदर्शन शानदार रहा। 2017 चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल तक भारत को पहुंचाने में भी उनकी अहम भूमिका थी।
हालांकि विराट कोहली के साथ मतभेद के कारण जून 2017 में उन्होंने कोच पद से इस्तीफा दे दिया। यह क्रिकेट जगत के लिए एक दुखद पल था क्योंकि अनिल के नेतृत्व में टीम बहुत अच्छा कर रही थी।
अनिल कुंबले रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और मुंबई इंडियंस की टीमों के साथ आईपीएल में भी जुड़े रहे। वे मुख्य कोच और मेंटर के रूप में काम किया। उनका अनुभव और ज्ञान युवा खिलाड़ियों के लिए बहुत फायदेमंद रहा।
अनिल कुंबले ने खेल से जुड़े कई व्यवसायिक उद्यमों में भी हिस्सा लिया। उन्होंने टिमबर्स स्पोर्ट्स नामक कंपनी की स्थापना की जो खेल प्रबंधन और मार्केटिंग में काम करती है।
वे कई दान और सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहे। उन्होंने युवाओं को क्रिकेट सिखाने के लिए कई क्रिकेट अकादमियों की स्थापना में मदद की।

अनिल कुंबले का व्यक्तिगत जीवन बहुत सुखी और सरल रहा है। वे एक निजी व्यक्ति हैं और मीडिया में अपने परिवार के बारे में बहुत कम बात करते हैं।
अनिल की शादी चेतना रामथीर्थ से हुई। चेतना एक होम साइंस स्नातक हैं। दोनों ने 1999 में शादी की। उनकी शादी परंपरागत तरीके से हुई और परिवार और दोस्तों के बीच एक साधारण समारोह था।
अनिल और चेतना के तीन बच्चे हैं – एक बेटा और दो बेटियां। बेटे का नाम मानस है और बेटियों के नाम अनामिका और स्वस्तिका हैं। अनिल अपने बच्चों के साथ गुणवत्ता समय बिताना पसंद करते हैं।
अनिल एक पारिवारिक व्यक्ति हैं और अपने परिवार के बहुत करीब हैं। वे अपने माता-पिता और भाई के साथ नियमित संपर्क में रहते हैं। परिवार अनिल के लिए हमेशा सबसे पहली प्राथमिकता रही है।
क्रिकेट के अलावा अनिल को पढ़ना और संगीत सुनना पसंद है। वे एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं जो विभिन्न विषयों में रुचि रखते हैं। उन्हें शतरंज खेलना भी पसंद है।
अनिल कुंबले एक अनुशासित जीवनशैली जीते हैं। वे नियमित रूप से व्यायाम करते हैं और स्वस्थ भोजन खाते हैं। उनकी फिटनेस हमेशा सबको प्रेरित करती रही है।
अनिल कुंबले को खेल भावना और ईमानदारी के लिए जाना जाता है। वे क्रिकेट के सच्चे सज्जन खिलाड़ी माने जाते हैं। उन्होंने कभी भी अनुशासन और नियमों का उल्लंघन नहीं किया।
2008 में वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्स्टन में एक घटना हुई जो अनिल की ईमानदारी को दर्शाती है। एक बल्लेबाज़ के खिलाफ अपील करने के बाद अनिल ने अंपायर को बताया कि गेंद पहले जमीन पर लगी थी। इससे बल्लेबाज़ नॉट आउट दिया गया। यह उनकी खेल भावना का सबसे बड़ा उदाहरण है।
अनिल को उनकी मेहनत और समर्पण के लिए भी याद किया जाता है। उन्होंने कभी भी अभ्यास में कोई कसर नहीं छोड़ी। घायल होने के बावजूद भी वे खेलते रहे। 2002 में वेस्टइंडीज के खिलाफ जबड़े की चोट के बावजूद उन्होंने बैंडेज लगाकर खेलते हुए 14 विकेट लिए।
उनकी विनम्रता भी उनकी बड़ी खासियत है। इतनी बड़ी उपलब्धियों के बाद भी वे हमेशा जमीन से जुड़े रहे। उन्होंने कभी घमंड नहीं किया और हमेशा टीम को पहले रखा।
अनिल एक अच्छे नेता भी हैं। उन्होंने युवा खिलाड़ियों को हमेशा मार्गदर्शन दिया और उनकी मदद की। हरभजन सिंह, ज़हीर खान जैसे कई खिलाड़ियों ने अनिल से बहुत कुछ सीखा।
अनिल कुंबले का भारतीय क्रिकेट में योगदान अतुलनीय है। उन्होंने 1990 से 2008 तक भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और इस दौरान कई यादगार जीत दिलाईं।
वे भारत के पहले गेंदबाज़ थे जिन्होंने 600 टेस्ट विकेट लिए। यह उपलब्धि उनके समर्पण और कड़ी मेहनत का प्रमाण है। उनके रिकॉर्ड को तोड़ना बेहद मुश्किल है।
अनिल ने स्पिन गेंदबाजी को एक नया आयाम दिया। परंपरागत लेग स्पिनरों की तरह वे बाउंस पर निर्भर थे न कि बड़े टर्न पर। उनकी शैली अनोखी थी और बहुत प्रभावी थी।
उन्होंने दूसरे स्पिनरों के लिए रास्ता तैयार किया। हरभजन सिंह और अनिल मिलकर भारत के लिए घातक जोड़ी बने। उन दोनों ने मिलकर विरोधी टीमों को कई बार हराया।
अनिल ने विदेशों में भी शानदार प्रदर्शन किया। आमतौर पर भारतीय स्पिनर विदेशों में संघर्ष करते हैं लेकिन अनिल ने हर जगह अच्छा प्रदर्शन किया। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका में भी वे सफल रहे।
अनिल कुंबले की कहानी हर युवा के लिए प्रेरणा है। उन्होंने साबित किया कि मेहनत और समर्पण से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए कड़ी मेहनत की।
वे साधारण परिवार से आए और अपनी मेहनत से शिखर तक पहुंचे। उन्होंने पढ़ाई और खेल दोनों को संतुलित किया। यह दर्शाता है कि दोनों चीजें साथ-साथ की जा सकती हैं।
अनिल की ईमानदारी और खेल भावना ने उन्हें क्रिकेट जगत में सम्मान दिलाया। वे एक रोल मॉडल हैं जिनसे युवा खिलाड़ी बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनका व्यवहार और अनुशासन अनुकरणीय है।
उनकी विरासत आज भी जीवित है। भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी की जो परंपरा है उसमें अनिल का बहुत बड़ा योगदान है। रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा जैसे आधुनिक स्पिनर अनिल की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
अनिल कुंबले सिर्फ एक महान क्रिकेटर नहीं बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी हैं। उनकी विनम्रता, ईमानदारी और मेहनत उन्हें सबसे अलग बनाती है। वे आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
अनिल कुंबले भारतीय क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने अपने 18 साल के शानदार करियर में भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। 619 टेस्ट विकेट और एक पारी में 10 विकेट लेने का रिकॉर्ड उनकी महानता को दर्शाता है।
अनिल ने साबित किया कि सफलता पाने के लिए प्रतिभा के साथ-साथ मेहनत और समर्पण भी जरूरी है। उन्होंने खेल भावना और ईमानदारी के नए मानदंड स्थापित किए। वे हर युवा खिलाड़ी के लिए एक आदर्श हैं।
रिटायरमेंट के बाद भी वे क्रिकेट से जुड़े रहे और अपना योगदान जारी रखा। कोच, प्रशासक और मार्गदर्शक के रूप में उन्होंने भारतीय क्रिकेट की सेवा की। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
अनिल कुंबले का नाम हमेशा भारतीय क्रिकेट के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा रहेगा। वे न केवल एक महान खिलाड़ी बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, लगन और ईमानदारी से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।
अनिल कुंबले भारत के महान क्रिकेटर हैं जिन्होंने 132 टेस्ट मैचों में 619 विकेट लिए। वे एक पारी में 10 विकेट लेने वाले दुनिया के दूसरे गेंदबाज़ हैं।
अनिल कुंबले का जन्म 17 अक्टूबर 1970 को बैंगलोर, कर्नाटक में हुआ था।
अनिल कुंबले ने अपने करियर में कुल 619 टेस्ट विकेट लिए जो रिटायरमेंट के समय तीसरा सबसे बड़ा रिकॉर्ड था।
7 फरवरी 1999 को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में पाकिस्तान के खिलाफ अनिल ने एक पारी में 10 विकेट लिए।
अनिल कुंबले ने राष्ट्रीय विद्यालय कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है।
अनिल कुंबले ने 16 अगस्त 1990 को इंग्लैंड के खिलाफ मैनचेस्टर में अपना टेस्ट डेब्यू किया।
अनिल कुंबले दाएं हाथ के लेग स्पिन गेंदबाज़ थे जो अपनी लंबाई का फायदा उठाकर गेंद से ज्यादा उछाल लेते थे।
अनिल कुंबले को अर्जुन पुरस्कार (1995), पद्म श्री (2005), और आईसीसी हॉल ऑफ फेम (2015) में शामिल किया गया।
अनिल कुंबले ने नवंबर 2007 से 2008 तक भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी की।
1993 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अनिल ने 12 रन देकर 6 विकेट लिए जो उनका सर्वश्रेष्ठ वनडे प्रदर्शन था।
अनिल कुंबले ने कुल 271 वनडे मैच खेले और 337 विकेट लिए।
10 अगस्त 2007 को ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ अनिल ने अपना पहला और एकमात्र टेस्ट शतक (110 रन) बनाया।
जून 2016 में अनिल कुंबले को भारतीय क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया।
अनिल कुंबले की पत्नी का नाम चेतना रामथीर्थ है। उनकी शादी 1999 में हुई थी।
अनिल कुंबले के तीन बच्चे हैं – एक बेटा मानस और दो बेटियां अनामिका और स्वस्तिका।
अनिल कुंबले ने 2 नवंबर 2008 को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दिल्ली टेस्ट में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर से रिटायरमेंट लिया।
एक टेस्ट पारी में 10 विकेट लेना अनिल कुंबले का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। क्रिकेट इतिहास में यह उपलब्धि केवल दो बार हुई है।
हां, 1996 में विजडन ने अनिल कुंबले को वर्ष के पांच क्रिकेटरों में से एक चुना था।
17 जनवरी 2008 को पर्थ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अनिल 600 टेस्ट विकेट पूरे करने वाले पहले भारतीय गेंदबाज़ बने।
अनिल कुंबले की सबसे बड़ी खासियत उनकी खेल भावना, ईमानदारी, अनुशासन और मेहनत थी। वे क्रिकेट के सच्चे सज्जन खिलाड़ी माने जाते हैं।