Guru Angad Dev Ji Biography in Hindi | गुरु अंगद देव जी की जीवनी

श्री गुरु अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु थे, जिन्होंने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया। उन्होंने गुरुमुखी लिपि की शुरुआत की, लंगर प्रथा को मजबूत बनाया और शिक्षा व समानता का संदेश दिया।

श्री गुरु अंगद देव जी (31 मार्च 1504 – 29 मार्च 1552) सिख धर्म के दूसरे गुरु थे। उनका जन्म पंजाब के सराe नागा नामक गाँव में हुआ था, जो आज मुक्तसर जिला में स्थित है। गुरु जी का बचपन का नाम भाई लहिणा जी था। उनके पिता का नाम फेरू मल जी और माता का नाम सभराई जी था। वे खत्री परिवार से संबंध रखते थे। प्रारंभ में वे माता दुर्गा के परम भक्त थे। हालांकि, जब उनकी मुलाकात श्री गुरु नानक देव जी से हुई, तो उन्होंने सिख धर्म अपना लिया। इसके बाद, वे कर्तारपुर साहिब में गुरु जी के साथ रहने लगे।

गुरु नानक देव जी ने उनकी सेवा भावना और समर्पण देखकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना। उन्होंने भाई लहिणा जी का नाम बदलकर गुरु अंगद देव जी रखा, जिसका अर्थ है “मेरा अपना अंग”। इस प्रकार, 1539 ईस्वी में गुरु अंगद देव जी सिखों के दूसरे गुरु बने।

जन्म 31 मार्च 1504
स्थान सराe नागा, मुक्तसर (पंजाब)
पिता फेरू मल जी
माता सभराई जी
पत्नी माता खीवी जी
संतान दो पुत्र – दासू जी और दातू जी
दो पुत्रियाँ – अमरो जी और अनोखी जी
ज्योति ज्योत समाना 29 मार्च 1552, खडूर साहिब (पंजाब)
Mudhla Jeevan aur Parivaar (प्रारंभिक जीवन और परिवार)

गुरु अंगद देव जी का जन्म पंजाब के सराए नागा गाँव में हुआ था। उनके पिता एक व्यापारी थे। उन्होंने अपने पुत्र को अच्छी शिक्षा दिलाई। लहिणा जी विद्वान थे और बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे दुर्गा माता के भक्त थे और हर वर्ष ज्वालामुखी मंदिर की यात्रा करते थे। 1520 में उनका विवाह माता खीवी जी से हुआ। इसके बाद, उनके दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। बाद में, मुगलों के अत्याचारों के कारण परिवार खडूर साहिब नामक गाँव में बस गया, जो ब्यास नदी के किनारे स्थित था।

Guru Nanak Dev Ji se Mulaqat (गुरु नानक देव जी से मुलाकात)

भाई लहिणा जी की मुलाकात पहली बार गुरु नानक देव जी के शिष्य भाई जोधा जी से हुई। उन्होंने उनके मुख से गुरु नानक देव जी के उपदेश सुने और गहराई से प्रभावित हुए। इसके बाद, उन्होंने गुरु नानक जी के दर्शन करने का निश्चय किया। गुरु जी से मिलने के बाद उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने समझा कि सच्चा ईश्वर निराकार है और मूर्ति में नहीं, बल्कि मन में पाया जा सकता है।

भाई लहिणा जी गुरु नानक जी के शिष्य बन गए और कर्तारपुर में सेवा करने लगे। जब गुरु नानक देव जी ने उत्तराधिकारी चुनने का समय आया, तो उन्होंने अपने पुत्रों की जगह भाई लहिणा जी को चुना। उनकी सेवा, भक्ति और विनम्रता देखकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर 1539 को उन्हें गद्दी सौंपी और नाम दिया – गुरु अंगद देव जी।

Gurmukhi Lipi ki Shuruaat (गुरुमुखी लिपि की शुरुआत)

गुरु नानक देव जी के ज्योति ज्योत समाने के बाद गुरु अंगद देव जी खडूर साहिब लौट आए। वहाँ उन्होंने गुरुमुखी लिपि की शुरुआत की। इसी लिपि में आगे चलकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी लिखा गया। उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षा केंद्र खोले और युवाओं के लिए अखाड़े बनवाए ताकि वे शारीरिक रूप से मजबूत रहें।

गुरु जी ने गुरु नानक देव जी की लिखी बाणी एकत्र की और स्वयं के 62 श्लोक भी रचे। इसके अलावा, उन्होंने लंगर प्रथा को और व्यापक बनाया ताकि हर कोई बिना भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन कर सके।

Humayun Badshah ko Updesh (हुमायूँ बादशाह को उपदेश)

1540 में जब हुमायूँ बादशाह शेरशाह सूरी से हार गया, तब वह गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने आया। उस समय गुरु जी ध्यान में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। तभी गुरु जी ने आँखें खोलीं और कहा “बादशाह, यह तलवार तुम्हें युद्धभूमि में निकालनी चाहिए थी, न कि किसी संत पर।” उनके इन वचनों ने हुमायूँ को पश्चाताप से भर दिया। उसने गुरु जी से क्षमा मांगी। गुरु जी ने कहा “अब तुझे अपना राज्य वापस पाने में 12 वर्ष लगेंगे।” और ऐसा ही हुआ।

Goindwal Nagar ki Sthaapna (गोइंदवाल नगर की स्थापना)

गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल नगर की स्थापना की, जो पहले बंजर भूमि थी। यह भूमि गोइंदा खत्री नामक व्यक्ति की थी। वह अपने पूर्वजों की याद में गाँव बसाना चाहता था, लेकिन सफल नहीं हो पा रहा था। तब उसने गुरु जी से सहायता मांगी। गुरु जी ने भाई अमरदास जी को उसके साथ भेजा और निर्माण शुरू कराया। धीरे-धीरे गोइंदवाल नगर फला-फूला और सिख समुदाय का केंद्र बन गया।

Khadoor Sahib vich Jyoti Jot Samauna (खडूर साहिब में ज्योति ज्योत समाना)

गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी की परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने पुत्रों की जगह भाई अमरदास जी को गद्दी सौंपी। साथ ही, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र बाणी और अपने लिखे हुए श्लोकों की पोथी उन्हें दी। अंततः 29 मार्च 1552 को गुरु जी 48 वर्ष की आयु में खडूर साहिब में ज्योति ज्योत समा गए।

Guru Angad Dev Ji ka Sikh Dharam Mein Yogdaan (गुरु अंगद देव जी का सिख धर्म में योगदान)

गुरु अंगद देव जी का सिख धर्म में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सिख धर्म को एक नई पहचान दी। साथ ही, उन्होंने शिक्षा, समानता और सेवा के मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाया। उन्होंने गुरुमुखी लिपि को प्रचलित किया, जिससे सिख इतिहास और शिक्षाएँ आज भी जीवंत हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: गुरु अंगद देव जी कौन थे?

गुरु अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु थे। वे श्री गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी बने और सिख धर्म के प्रचार-प्रसार में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।

प्रश्न 2: गुरु अंगद देव जी का असली नाम क्या था?

गुरु अंगद देव जी का असली नाम भाई लहणा जी था। बाद में गुरु नानक देव जी ने उन्हें “गुरु अंगद देव” नाम दिया, जिसका अर्थ है – “मेरा अपना अंग।”

प्रश्न 3: गुरु अंगद देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च 1504 को पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब ज़िले के सराय नागा गाँव में हुआ था।

प्रश्न 4: गुरु अंगद देव जी के मुख्य योगदान क्या हैं?

गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानकीकृत किया, बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल स्थापित किए, युवाओं के लिए अखाड़े शुरू किए और लंगर की परंपरा को आगे बढ़ाया।

प्रश्न 5: गुरु अंगद देव जी की गुरु नानक देव जी से मुलाकात कैसे हुई?

भाई लहणा जी, जो माँ दुर्गा के भक्त थे, ने एक दिन गुरु नानक देव जी के उपदेश सुने और उनसे गहराई से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए। यही मुलाकात उनके जीवन का turning point बनी।

प्रश्न 6: गुरु अंगद देव जी ने किसे अपना उत्तराधिकारी बनाया?

गुरु अंगद देव जी ने अपने पुत्रों की बजाय भक्ति और सेवा भाव के कारण भाई अमरदास जी को सिख धर्म का तीसरा गुरु नियुक्त किया।

प्रश्न 7: गुरु अंगद देव जी का देहांत कब हुआ?

गुरु अंगद देव जी ने 29 मार्च 1552 को खडूर साहिब (पंजाब) में जोति जोत समाई।

प्रश्न 8: गुरु अंगद देव जी का जीवन सिख धर्म के इतिहास में क्यों महत्वपूर्ण है?

गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म की नींव को और मजबूत किया, गुरुमुखी लिपि को विकसित किया और शिक्षा, समानता व सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाया।

Gagandeep
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